यह हिंदी अनुवाद अंग्रेजी के मूल Samsung India workers speak out after CITU’s betrayal of their 37-day strike का जो मूलतः 30 अक्टूबर 2024 को प्रकाशित हुआ थाI
स्टालिनवादी कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया (मार्क्सवादी) या सीपीएम से संबद्ध ट्रेड यूनियन फ़ेडरेशन सेंटर ऑफ़ इंडियन ट्रेड यूनियंस (सीटू) ने तमिलनाडु में घरेलू उपकरण बनाने वाली कम्पनी सैमसंग इंडिया के 1500 वर्करों की हड़ताल को 15 अक्टूबर 2024 को अचानक ख़त्म करा दिया। उसने ऐसा, राज्य की डीएमके सरकार के निर्देश पर किया, जो खुद वैश्विक पूंजी और भारत की धुर दक्षिणपंथी बीजेपी नीत राष्ट्रीय सरकार के इशारे पर काम कर रही थी।
सीटू ने बिना रैंक एंड फ़ाइल कमेटियों से बात किए और वर्करों की बिना कोई मांग माने जाने पर भी हड़ताल को समाप्त कराया। इन मांगों में पहला तो यही था कि सीटू से संबद्ध नई बनी यूनियन सैमसंग इंडिया वर्कर्स यूनियन (एसआईडब्ल्यूयू) को राज्य सरकार मान्यता दे, जोकि तमिलनाडु और भारतीय क़ानून के अनुसार वर्करों का क़ानूनी और संवैधानिक अधिकार है।
हड़ताल में शामिल कर्मचारियों को आदेश दिया गया कि वे 17 अक्टूबर से काम पर लौट जाएं। जब इस दिन वे फ़ैक्ट्री पहुंचे, सैमसंग मैनेजमेंट ने उन्हें अपना काम जारी रखने की अनुमति नहीं दी। इसकी बजाय मैनेजमेंट ने उन्हें काम पर लौटने से पहले एक सप्ताह लंबे 'अनिवार्य' ट्रेनिंग सेशन से होकर गुजरने का निर्देश दिया, जोकि मैनेजमेंट की ओर से मज़दूरों को डराने धमकाने वाली क्लास थी।
उन्हें ये भी बताया गया कि यह तथाकथित ट्रेनिंग 150-150 वर्करों के बैच में कराया जाएगा, इस हिसाब से यह दिसम्बर तक चलेगी और जो भी इसमें 'फ़ेल' होंगे उन्हें काम से निकाल दिया जाएगा।
इस सप्ताह, 150 कर्मचारियों के दूसरे बैच ने एक सप्ताह की ट्रेनिंग शुरू की है। जिन लोगों को इस ट्रेनिंग सेशन के लिए नहीं बुलाया गया है, काम पर लौटने को लेकर वो संशय में हैं। और इसके बिना उन्हें नियमित सैलरी भी नहीं मिलेगी। 9 सितम्बर को शुरू हुई 37 दिनों तक लंबी चली हड़ताल के बाद से ही वर्करों को कोई सैलरी नहीं मिली है।
दूसरी तरफ़ मैनेजमेंट और तमिलनाडु की डीएमके सरकार के सामने इस निर्लज्ज घुटना टेकू और खुल्लमखुल्ला धोखे को सीटू 'ऐतिहासिक' जीत बताकर जश्न मना रही है। एक लंबे समय तक सीटू के पदाधिकारी रह चुके और एसआईडब्ल्यूयू नेता ई मुथुकुमार के अनुसार, यह ऐसी जीत है जिसे 'दुनिया हैरानी से देख रही है' और इसने 'मज़दूरों में खुशी लहर पैदा' की है।
26 अक्टूबर को सीपीएम के नेता, इसकी सहयोगी स्टालिनवादी कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया (सीपीआई) और तमिल राष्ट्रवादी पार्टी वीसीके, ये सभी तमिलनाडु में डीएमके के साथ चुनावी/राजानीतिक गठबंधन में हैं, डीएमके अध्यक्ष और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन से मुलाक़ात की और उन्हें सैमसंग इलेक्ट्रॉनिक्स के वर्कर्स की हड़ताल को 'सौहार्दपूर्ण' तरीके से हल करने में दखल देने के लिए 'शुक्रिया' अदा किया।
असल में डीएमके सरकार ने हड़ताली मज़दूरों को धमकाने, हिरासत में लेने और हिंसक रूप से हमला करने के लिए लगातार पुलिस को खुला छोड़ा और इस तथ्य के बावजूद कि तमिलनाडु में यूनियन का गठन एक संवैधानिक अधिकार है, उसने नई बनी एसआईडब्ल्यूयू के रजिस्ट्रेशन में सक्रिय रूप से बाधा डाला था।
सीटू ने सैमसंग वर्कर्स के पक्ष में व्यापक मज़दूर वर्ग को लामबंद करने से इनकार कर दिया। उसने हड़ताल वाले प्लांट के ठेका मज़दूरों का समर्थन हासिल करने के लिए, हड़ताल के पहले या बाद में कोई ईमानदार कोशिश नहीं की और सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों समेत पूरे भारत के अन्य मालिकों जैसा रवैया अपनाने वाले सैमसंग मैनेजमेंट के, मज़दूर वर्ग को बांटने वाली तिकड़मों के सामने घुटने टेक दिए।
जब डीएमके ने संकेत दिया था कि अगर स्टालिनवादियों ने उनकी बात नहीं मानी और तत्काल हड़ताल ख़त्म नहीं कराई तो वह सीपीएम के साथ गठबंधन को तोड़ने देगी, इसके बाद उन्होंने आदेश का पालन किया और हड़ताल को बेच खाने वाला एक त्रिपक्षीय समझौता किया।
जैसा कि डब्ल्यूएसडब्ल्यूएस ने चेतावनी दी थी, सैमसंग मैनेजमेंट मज़दूरों पर अपना हमला जारी रखे हुए है। यह तथाकथित 'ट्रेनिंग मीटिंग' को वर्करों को डराने धमकाने के लिए इस्तेमाल कर रहा है और अपने जेबी 'वर्कर्स कमेटी' को मान्यता देने वाले दस्तावेज तैयार करने के लिए उनके हस्ताक्षर ले रहा है। यह कमेटी मैनेजमेंट ने एसआईडब्ल्यूयू के विरोध में अपना 'प्रतिनिधि' दिखाने के तौर पर बनाया है।
जबकि स्टालिनवादी नेता इसके जवाब में, दक्षिण कोरियाई मल्टीनेशनल कंपनी के सामने गिड़गिड़ा रहे हैं कि वो रैंक एंड फ़ाइल वर्करों के विरोध को दबाने और उन पर काबू रखने के लिए एक बेहतर तालमेल में उनके साथ काम करेंगे और इससे कंपनी की उत्पादकता और मुनाफ़ा दोनों में इजाफ़ा होगा।
वर्कर्स कमेटी के साथ हस्ताक्षर करने के लिए वर्करों को फुसलाने की मैनेजमेंट की खुल्लमखुल्ला कोशिशों की निंदा करते हुए, एक बयान में सीटू द्वारा थोपे गए एसआईडब्ल्यूयू के अध्यक्ष ई मुथुकुमार ने कहा, 'इस तरह की औद्योगिक शांति, उत्पादकता और कंपनी के विकास के लिए सीटू उनके (मैनेजमेंट) साथ काम करने के लिए हमेशा तैयार है।'
“सीटू कार्यकर्ता शांति चाहते हैं और हम उन्हें उत्पादन में मदद करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं, इसलिए हम यह एलान करते हैं कि लंबे संघर्ष के बाद आई इस औद्योगिक शांति को बनाए रकने की ज़िम्मेदारी सैमसंग मैनेजमेंट की है।“
वर्करों को संगठित किए जाने की इजाज़त दिए जाने के बदले सैमसंग वर्करों की निगरानी के लिए मैनेजमेंट के साथ काम करने की इच्छा व्यक्त करने वाली सीटू की यह घोषणा, स्टालिनवादी सीपीएम और सीटू के दशकों पुरानी भूमिका के ही पूरी तरह अनुरूप है। उन्होंने वर्करों के जुझारू संघर्षों को अलग थलग किया और दबाने का काम किया, जबकि दक्षिणपंथी सरकारों का साथ दिया जिनमें तमिलनाडु में डीएमके की अगुवाई वाली और राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस पार्टी की अगुवाई वाली सरकारें रहीं। यह वही कांग्रेस है जिसने निवेश परस्त नीतियों को थोपा और चीन के ख़िलाफ़ अमेरिकी साम्राज्यवाद की सैन्य रणनीतिक अक्रामकता की योजना में भारत को पूरी तरह एकाकार करने का काम किया है।
'हमने सीटू पर भरोसा किया, पर उन्होंने हमें कहीं का नहीं छोड़ा'
जो सैमसंग वर्कर हड़ताल के दौरान डब्ल्यूएसडब्ल्यूएस से बात करने को लेकर उदासीन थे, क्योंकि सीटू नौकरशाहों ने उन्हें ऐसा करने से रोक रखा था, अब वे बोलने को उत्सुक हैं। इनमें से कई बुरी तरह हताश और छला हुआ महसूस करते हैं। सैमसंग मैनेजमेंट और सीटू दोनों की ओर से बुरे नतीजे भुगतने की आशंका से जिन वर्करों ने नाम न ज़ाहिर करने की शर्त पर बात की, उन्होंने बताया कि फ़ैक्ट्री में काम करने का उनके लिए क्या मतलब है और डीएमके के हड़ताल विरोधी हिंसक अभियान के सामने सीटू के आत्मसमर्पण को लेकर वे क्या सोचते हैं।
हड़ताल में भाग लेने वाले एक परमानेंट वर्कर वसंथ ने यह कड़वा बयान दियाः
'सैमसंग फ़ैक्ट्री के शोषण के ख़िलाफ़ हड़ताल करना हमारा अधिकार है। हालांकि डीएमके की तमिलनाडु सरकार ने हमारे प्रदर्शन को दबाने के लिए पुलिस का खुलकर इस्तेमाल किया। हमें सीटू में पूरा विश्वास था। लेकिन मुझे लगता है कि उन्होंने हमें अधर में छोड़ दिया। 17 अक्टूबर, गुरुवार को जब हम लोग काम शुरू करने के लिए फ़ैक्ट्री पहुंचे, जैसा कि 15 अक्टूबर को त्रिपक्षीय समझौते के दौरान सहमति बनी थी, मैनेजमेंट ने हमें बताया कि उसके द्वारा कराए जा रहे एक सप्ताह लंबे ट्रेनिंग सेशन में हम जबतक शामिल नहीं होते, हमें काम करने की इजाज़त नहीं दी जाएगी। इस ट्रेनिंग सेशन के लिए वर्करों को 150-150 के बैच में बांटा गया है।'
उन्होंने कहा, 'मैं कन्फ़्यूज़ हूं कि हमने हड़ताल किस लिए की थी? हमें फ़ैक्ट्री के अंदर जाने को क्यों कहा गया? यूनियन के कहे पर भरोसा करते हुए 17 अक्टूबर को बड़ी उम्मीद बांधकर कंपनी गए थे, लेकिन सैमसंग मैनेजमेंट ने हमें काम करने से रोक दिया। हमारी आजीविका पर सवाल खड़ा हो गया है, और हमें नहीं पता कि भविष्य में क्या होगा। हमें नहीं पता कि हमारे साथ क्या होगा।'
“डीएमके सैमसंग मैनेजमेंट की रीढ़ के रूप में काम करता है। सीटू पर भरोसा कर हम ऐसी हालत में हैं। हड़ताल का क्या नतीजा रहा, हमें साफ़ नहीं है। इस हड़ताल में कौन जीता, मज़दूर या सैमसंग, तो मुझे लगता है कि सैमसंग जीता। अब मैनेजमेंट हमें फ़ैक्ट्री में जाने से रोक रहा है और तभी आने को बोल रहा है जब उसके द्वारा चिट्ठी भेजी जाएगी। लेकिन केवल 150 वर्करों को ही ईमेल मिला और वे ट्रेनिंग के लिए गए और अब 150 वर्करों का दूसरा बैच ट्रेनिंग के लिए गया है। लेकिन हमें पता नहीं है कि यह ट्रेनिंग कम ख़त्म होगी और हम काम पर कब लौटेंगे और सैलरी कब मिलेगी।“
“आम तौर पर, हमें सुबह आठ बजे से लेकर शाम 5.20 बजे तक काम करना पड़ता था, लेकिन अंतिम 20 मिनट के काम का हमें पैसा नहीं मिलता था। और, हमारी बस शाम 5.30 बजे तक फ़ैक्ट्री से निकल जाती है और हमें उसे पकड़ने के लिए भागना पड़ता है। अगर बस छूट जाए तो हमें दूसरे साधनों से घर जाना पड़ता है। यह तब है जब हम हफ़्ते के छह दिन कंपनी के लिए काम करते हैं और सप्ताह में आम तौर पर तीन घंटे का ओवरटाइम करते हैं। सैमसंग मैनेजमेंट हमारे साथ ऐसा ही बर्ताव करता है।“
सैमसंग में एक साल से काम करने वाले एक अन्य ठेका वर्कर मदन ने कहा कि उनसे भी हफ़्ते में छह दिन काम कराया जाता है। उन्हें महीने की कुल सैलरी 15,000 रुपये के क़रीब मिलती है, लेकिन प्राविडेंट फ़ंड को काटने के बाद 13,000 रुपये मिलते हैं। सैमसंग ज्वाइन करने से पहले उन्होंने अन्य कई कंपनियों में ठेका मज़दूरी के रूप में चार साल काम किए थे।
“हर सप्ताह छह दिन काम करने के अलावा मुझे दो घंटे का अतिरिक्त ओवरटाइम करना पड़ता है। हालांकि कंपनी के अन्य ठेका वर्करों को बस की सुविधा मिलती है लेकिन मुझे नहीं। इसलिए मुझे अपने किराए के कमरे से सैमसंग प्लांट तक पहुंचने के लिए हर दिन दो किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है।“
जब बस की सुविधा और कैंटीन के खाने की बात आती है तो ठेका मज़दूरों को यहां भी भेदभाव का सामना करना पड़ता है। मदन ने बताया कि, 'मेरी लाइन में काम करने वाले मज़दूरों को कंपनी कैंटीन में केवल एक बार खाना खाने की इजाज़त है। सैमसंग वर्करों की हड़ताल के दौरान मुझे 9 सितम्बर से 15 अक्टूबर के बीच सप्ताह में दो दिन काम नहीं मिला।'
“मैनेजमेंट के बुरे बर्ताव की वजह से मैंने सैमसंग छोड़ दिया“
एक और युवा सैमसंग वर्कर, कनि (बदला हुआ नाम) ने कहा, 'सैमसंग इंडिया इलेक्ट्रॉनिक्स के वॉशिंग मशीन मैन्युफ़ैक्चरिंग लाइन में मैंने क़रीब पांच महीने तक काम किया है। इसके अलावा आठ सालों तक कई अन्य फ़ैक्ट्रियों में ठेका मज़दूरी कर चुका हूं। लेकिन मुझे परमानेंट नौकरी नहीं मिल सकी। इसलिए मुझे ठीक ठाक आजीविका मिलने में परेशानी होती है। जबसे मेरे मां बाप की मृत्यु हुई है, मेरे पास कोई घर नहीं है और मुझे किराए के कमरे में रहना पड़ता है और ठेका मज़दूरी से हर दिन जो थोड़ी बहुत कमाई होती है, उसी से काम चलाना पड़ता है।'
एनियन ऑटो रिक्शा ड्राइवर हैं। उनकी उम्र 35 साल है और 2011 से 2016 के बीच उन्होंने सैमसंग में परमानेंट वर्कर के रूप में काम किया था। 2011 में जब उन्होंने कंपनी ज्वाइन किया, उन्हें 3,500 रुपये की सैलरी मिला करती थी। 2016 में जब उन्होंने नौकरी छोड़ी, उन्हें 15,000 रुपये सैलरी मिलती थी।
उन्होंने कहा, 'कम्पनी वर्करों से 12 घंटे काम कराती थी, बावजूद कि सामान्य काम 9 घंटे का माना जाता था। मैं सुबह 8 बजे से शाम पांच बजे तक काम करता था और 60 रुपये प्रति घंटे ओवरटाइम का मिलता था। फ़ैक्ट्री मैनेजमेंट के बुरे बर्ताव की वजह से मैंने फ़ैक्ट्री छोड़ दी। अगर वर्कर थोड़ी सांस लेने के लिए भी असेंबली लाइन छोड़ देते थे, तो उन्हें काम पर आने की इजाज़त नहीं दी जाती थी और उन्हें बाहर खड़ा रखा जाता था। सैमसंग मैनेजमेंट ने इसी तरह की मेरी बेइज़्ज़ती की थी। और जब भी मैंने इसका विरोध किया, मुझे और भारी काम पकड़ा दिया गया।'
एनियन ने अपनी बात जारी रखी, 'यूनियन के अधिकार के लिए सैमसंग वर्करों की हड़ताल का मैं स्वागत करता हूं। वर्कर एकजुट होकर ही अपने अधिकार को जीत सकते हैं। जब मैं वहां काम करता था, मेरे पक्ष में खड़ा होने वाला वहां कोई नहीं था। आखिरकार मैनेजमेंट के बुरे बर्ताव और उत्पीड़न के चलते मैंने सैमसंग छोड़ दिया।'
फिर उन्होंने हड़ताल के नतीजे और मज़दूरों द्वारा पूरे पूंजीवादी सत्ता तंत्र के विरोध में वर्ग संघर्ष के तरीकों के आधार पर एक नया रास्ता तैयार करने की ज़रूरत के बारे में बात की। उन्होंने कहा,
'जब सीटू सीपीएम से संबद्ध है और सीपीएम का डीएमके सरकार के साथ राजनीतिक रूप से गठजोड़ है जो खुद सैमसंग का पूरी तरह साथ दे रही है, तो सीटू कैसे सैमसंग मैनेजमेंट के ख़िलाफ़ संघर्ष कर पाएगी?'
'मैं डब्ल्यूएसडब्ल्यूएस के उस प्रस्ताव को सही मानता हूं कि ऐसी रैंक एंड फ़ाइल कमेटियों का गठन ही आगे का रास्ता है, जिसमें ठेका और परमानेंट वर्कर दोनों एकजुट हों। मज़दूरों की इस तरह की स्वतंत्र रैंक एंड फ़ाइल कमेटियां सैमसंग मैनेजमेंट को सफ़लता पूर्वक चुनौती दे सकती थीं। इसके अलावा, मैं इस बात पर भी सहमत हूं कि सुंगुवाछत्रम और श्रीपेरंबदूर औद्योगिक इलाक़ों में स्थित अन्य उद्योगों में काम करने वाले मज़दूरों को एकजुट करना, हमारी मांगों को मनवाने का तरीक़ा है। आख़िरकार, हमें नोएडा, दक्षिण कोरिया और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अन्य सैमसंग वर्करों को इकट्ठा करने की ज़रूरत है।'